| صدق |
مصداق |
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ای جاودانه یادت، جاری به جان ایران |
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ای آیت بهاران در پهنه ی زمستان |
خود را اگرچه خستی، شد ننگ ِ فتنه ،عریان |
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شب را چه خوش شکستی با رسم استوارت |
تسلیم را فکنـدی ، بر ژرفنـای نسیان |
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چون کوه ِسربلندی، درعین ِ پایبـندی |
بر رهروان گشودی راه ِ جسور عصیان |
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در شام های بی خواب، بی تاب ترز مهتاب |
شوری همیشه بر لب، هم نغمه با شهیدان |
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راه عبـور از شب، در پرتو رشـادت، |
از خفتگان ستـُردی ،رنگ کریه کتمان |
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آزادگی فشاندی ، بر جای جای هستی |
رغم نفاق دشمن، این کهنه خصم ِ ایمـان |
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ایمان به عشق ِ میهن،همواره در دلت بود |
چون صبح صادقی که شب می هراسد از آن |
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مصداق صـدق بودی ، با نام با مُسـما |
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چون تو هزار باید، گـُرد و گذشته از جان |
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ما را که اهل دردیم، محبوس ِ فصل سردیم |
سوزانَـد این به هُرمش، آن را کــَنـَد زبنیان |
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تا آتشت نمیرد، بر دیو و دد بگیرد |
دیدم که نیست یارا ، یک گفتم از هزاران |
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گفتم که بازگویم، با شعر، وصف حسنت |
بر سینه ی هر آن کو جویـَد شکوه ایران |
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ای پاکبازِ همت،حک شد چه نیک، نامت |
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ویدا فرهودی |
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اردیبهشت 1384 |
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